डायबिटिक रेटिनोपैथी से आंखों को गंभीर किस्म का ख़तरा : डॉ.सौरभ चौधरी

 

◆ अनियंत्रित डायबिटीज़ के शिकार हर 3 में से 1 मरीज़ है रेटिनोपैथी का शिकार

शब्दवाणी समाचार, मंगलवार 15 नवम्बर 2022, (ऐ के लाल) सम्पादकीय व्हाट्सप्प 8803818844, गौतम बुध नगर। लगभग 10-12 साल तक अनियंत्रित किस्म के डायबिटीज़ से पीड़ित 3 में से 1 मरीज़ डायबिटिक रेटोनोपैथी का शिकार हो जाता है. अगर समय पर इसका उपचार ना किया जाए तो मरीज़ की आंखों को गहरी क्षति हो सकती है और वो हमेशा के लिए देखने की क्षमता तक गंवा सकता है. भारत में मोतियाबिंद और ग्लूकोमा के बाद नेत्रहीनता का तीसरा सबसे बड़ा कारण है डायबिटिक रेटोनोपैथी. उल्लेखनीय है कि ज़्यादातर भारतीयों को इस बात का अंदाज़ा तक नहीं है कि डायबिटीज़ से किसी तरह से उनकी आंखें भी क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। इस बारे में बात करते हुए नोएडा स्थित आईकेयर आई  हॉस्पिटल के डॉ. सौरभ चौधरी ने कहा कि लोगों को इस संबंध में जागृत करने और उनकी धारणाओं को बदले जाने की सख़्त आवश्यकता है. उल्लेखनीय है दिल्ली/एनसीआर क्षेत्र में स्थित आईकेयर आई हॉस्पिटल की गिनती सबसे पुराने और विश्वसनीय अस्पतालों में होती है जिसे NABH की ओर से एक्रेडिशन भी प्राप्त है. इस अस्पताल की स्थापना 1993 में की गयी थी। 

ICARE आई हॉस्पिटल (नोएडा) के सीईओ डॉ. सौरभ चौधरी कहते हैं, "हाल ही में किये गये एक सर्वे के मुताबिक, 63% लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं कि डायबिटीज़ के चलते उनकी देखने की क्षमता को गहरा नुकसान हो सकता है. इतना ही नहीं, भारत में 93% लोग तभी किसी ऑप्थलमॉलॉजिस्ट (नेत्र विशेषज्ञ) के पास जाते हैं जब उन्हें आंखों से संबंधित किसी तरह की कोई समस्या होती है. मगर तब तक आंखों को गहरी क्षति हो चुकी होती है और फिर ऐसे में मरीज़ों का इलाज कर उन्हें ठीक करना बहुत मुश्क़िल साबित होता है. आंखें शरीर की खिड़कियों की तरह होती हैं. नियमित रूप से आंखों के परीक्षण के चलते डायबिटीज़ से प्रभावित होनेवाली आंखों की वस्तु स्थिति बारे में पहले ही पता लगाना संभव होता है, फिर भले ही मरीज़ को किसी तरह के लक्षण हो या ना हों. उल्लेखनीय है कि बड़ी तादाद में डायबिटीज़ से जुड़े मामलों का पता सामान्य नेत्र परीक्षण के दौरान ही चलता है! ग़ौरतलब है कि सभी स्वस्थ लोगों को साल‌ में कम से कम एक बार के लिए आंखों की जांच ज़रूर करानी चाहिए और डायबिटीज़ के मरीज़ों को हर 4 महीने में एक बार नेत्र चिकित्सक के पास ज़रूर जाना चाहिए।

वे आगे कहते हैं, "डायबिटिक रेटोनोपैथी के मरीज़ों को ड्राइविंग, पठन-पाठन‌ और अन्य तरह के काम करने के दौरान देखने में काफ़ी दिक़्कतों का सामना करना पड़ता है. जांच के ज़रिए पहले ही बीमारी का पता लगा लेने, शुगर लेवल को नियंत्रण में रखने और लेसर ट्रीटमेंट के ज़रिए मरीज़ों की देखने की क्षमता को उम्रभर के लिए सुरक्षित किया जा सकता है. यह बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि आर्थिक रूप से सक्षम वर्ग कड होने के बावजूद भी ज़्यादातर मरीज़ ना तो आंखों का परीक्षण कराते है और ना ही डायबिटीज़ संबंधी जांच कराने में वो कोई रूचि लेते हैं. इनमें से ज़्यादातर लोग इलाज के लिए अस्पताल में तब पहुंचते हैं जब उनकी बीमारी बेहद एडवांस स्टेज में पहुंच चुकी होती है. ऐसे में मरीज़ों का इलाज करना किसी भी बड़ी चुनौती से कम नहीं होता है. किसी भी मरीज़ के लिए नियमित रूप से आंखों की जांच और समयबद्ध तरीके से इलाज कराना बेहद ज़रूरी होता है ताकि मरीज़ रेटिनोपैथी से पैदा होनेवाली जटिलताओं से बच सकें।  दुनियाभर के 95 मिलियन (9.5 करोड़) व्यस्क डायबिटिक रेटिनोपैथी से पीड़ित है. इनमें से 80% लोगों को ठीक से दिखाई नहीं देने के कारण ड्राइविंग, पठन-पाठन अथवा किसी अन्य तरह का काम के दौरान मुश्क़िलों का सामना करना पड़ता है. डायबिटिक रेटिनोपैथी के अलावा डायबिटीज़ की वजह से आंखों में शुष्कता और मोतियाबिंद होने के आसार भी बढ़ जाते हैं. डाॅक्टरों के मुताबिक, डायबिटीज़ के मरीज़ों को 50-55 साल की उम्र में मोतियाबिंद होने की आशंका रहती है जबकि बिना डायबिटीज़ वाले लोगों को इसके 10 साल बाद ही मोतियाबंद होने की आशंका रहती है। 

डॉ. सौरभ चौधरी कहते हैं, "बहुत सारे लोगों को तब तक डायबिटीज़ हो जाने का पता नहीं चलता है जब तक कि उन्हें किन्हीं जटिलताओं की वजह से अस्पताल में इलाज के लिए जाना ना पड़ जाए. उल्लेखनीय है कि भारत में आमतौर पर आंखों का परीक्षण कराना लोगों की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं है. ऐसे में बड़े पैमाने पर डायबिटीज़ के मरीज़ नेत्रहीनता का शिकार हो जाते हैं और कइयों को लम्बे समय तक इलाज के लिए अस्पतालों में भर्ती रहना पड़ता है. ऐसे में उनके परिवारों के लिए इलाज़ कराना काफ़ी महंगा साबित होता है और अगर मरीज़ों की आर्थिक स्थिति ख़राब हो तो ऐसे में उनके लिए इलाज कराना मुमकिन ही नहीं हो पाता है। उल्लेखनीय है कि आईकेयर आई हॉस्पिटल में दिल्ली/एनसीआर क्षेत्र में रहनेवाले मरीज़ बड़ी तादाद में इलाज के लिए आते हैं. अस्पताल के अत्याधुनिक रेटिना डिपार्टमेंट में नियमित रूप से रेटिना स्पेशलिस्ट्स मरीज़ों की सेवा में कार्यरत रहते हैं. यहां‌ रोज़ाना‌ कम से कम 150 मरीज़ इलाज के लिए आते हैं, जिनमें से 100 मरीज़ डायबिटीज़ से ग्रस्त होते हैं. इन 100 मरीज़ों में से 40 मरीज़ डायबिटीज़ न्यूयरोपैथी से पीड़ित होते हैं। उल्लेखनीय है कि डायबिटिक रेटिनोपैथी उस वक्त आकार लेती है जब रेटिना की रक्त कोशिकाएं व्यक्ति के शरीर में शुगर लेवल के हाई होने के चलते क्षतिग्रस्त हो जाती हैं. इसके शुरुआती लक्षणों में धुंधलापन, दृष्टि में कमज़ोरी का एहसास, रात में ठीक से नहीं दिखाई देना और विविध रंगों की ठीक से पहचान नहीं कर पाना हैं. उल्लेखनीय है कि माइल्ड किस्म के मामलों का आसानी से इलाज संभव है जबकि एडवांस स्टेज में पहुंचे चुके मामलों में इलाज के लिए अमूमन लेसर ट्रीटमेंट अथवा सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है। 

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