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◆ सेवा सदन द्वारा गुलमोहर एंक्लेव में निशुल्क त्रिदिवसीय प्राकृतिक चिकित्सा शिविर का समापन
शब्दवाणी समाचार, शुक्रवार 28 जनवरी 2022, गाजियाबाद। को सेवा सदन द्वारा गुलमोहर एनक्लेव में त्रिदिवसीय नि:शुल्क आयुर्वेदिक प्राकृतिक चिकित्सा शिविर का समापन किया गया। इस अवसर पर चौधरी मंगल सिंह ने संबोधित कर जीवन में आयुर्वेद को अपनाने पर बल दिया इस अवसर पर शिविर में भारी संख्या में लोगों ने भाग ले संपूर्ण शारीरिक जांच करा आयुर्वेद उपचार माध्यम से स्वस्थ जीवन जीने की कला का रहस्य जान लाभ प्राप्त किया।
सेवा सदन के महामंत्री चौधरी मंगल सिंह जी ने बताया आयुर्वेद हमारे जीवन का समग्र शास्त्र है जिसमें ज्ञान विज्ञान से लेकर अध्यात्म तक संपूर्ण विधाओं का परिचय सहज ही मिलता है उन्होंने कहा आज जब अनियमित जीवनशैली व अनावश्यक एंटीबायोटिक के प्रयोग से नई-नई कठिनाइयां उत्पन्न हो रही हैं ऐसे में हम एक श्रेष्ठ आयुर्वेद उपचार के माध्यम से स्वस्थ जीवन के पुष्प पल्लवित और फलित होने की दिशा में कार्य कर मानव जीवन की व्याधियों का निराकरण करें ऐसा हमारा दायित्व है।आयुर्वेद को मुख्यतः जड़ी बूटियों से संबद्ध करके देखा जाता है वास्तव में आयुर्वेद का विषय अत्यंत विशाल है आहार और पाचन इसके केंद्र बिंदु है आयुर्वेद का मूल दर्शन पंचमहाभूत के सिद्धांत पर आधारित है यह पांच तत्व हैं:-
1 पृथ्वी- जो ठोस अवस्था का प्रतिनिधित्व करती है।
2 जल -यह तरल अवस्था का प्रतिनिधित्व करती है।
3 वायु - यह गैसीय अवस्था का प्रतिनिधित्व करती है।
4 अग्नि - यह रूपांतरण शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है।
5 आकाश- इसमें ईथर का अस्तित्व है जो सर्वव्यापी है ।
आयुर्वेद में मानव शरीर के संगठनात्मक विन्यास को भी तीन आधारभूत संघटकों में समझाया गया है यह हैं:-
1.दोष 2. धातु 3. मल
इन्हें भी उपरोक्त पांच तत्वों से निर्मित माना गया है
आयुर्वेद अनुसार प्रत्येक मानव शरीर में तीन दोष होते हैं
1 .वात 2. पित्त और 3 . कफ
इनमें से प्रत्येक में पांच में से कोई दो तत्व होते हैं आज हम आपको वात दोष के बारे में बताएंगे
वात दोष
यह वायु तथा आकाश तत्व से मिलकर बना है अतः हल्का होता है यह शरीर में मुख्य कार्यपालक अधिकारी की भूमिका निभाता है इसकी तुलना गतिज ऊर्जा से की जा सकती है वात गतिविधि के सभी रूपों में प्रवर्तक है वात दोष पांच प्रकार के होते हैं :-
1 प्राणवायु - इसका सम्बन्ध छाती या श्वसन से है ।
2 व्यान वायु - इसका* संबंध हृदय के कार्यों से हैं।
3 उदान वायु - इसका संबंध वमन तथा ऊपरी आहार नली से होता है
4 समान वायु - इसका संबंध आंतों से है यह भोजन के पाचन तथा मल बनाने संबंधी अपेक्षित क्रिया को नियंत्रित करती है।
5 अपान वायु - इसका संबंध गुदा एवं जननिक मुत्रीय प्रणाली से है यह मल, त्याग शुक्र सखलन तथा प्रसव को नियंत्रित करती है।
इस प्रकार वात दोष हमारे शरीर में मुख्य कार्यपालक अधिकारी की भूमिका निभाता है। इसको हम इस प्रकार भी जान सकते हैं कि जिस मनुष्य के दोष साम्यावस्था में हो अग्नि पाचन और पाक क्रियाये ठीक कार्य कर रही हों तथा दोष धातु मल की साम्यता को सामान्य प्रकृति या स्वस्थ कहते हैं परंतु यदि दोष धातु मल की विषमता ( क्षय या वृद्धि ) विकार या रोग कहलाता है।और रोग को पहचान कर रोगी के रोग को दूर कर उसे पुनः स्वस्थ कर उसके स्वास्थ्य की रक्षा करना आयुर्वेद का प्रयोजन है इसी प्रयोजन हेतु सेवा सदन निरंतर अपने निस्वार्थ भाव से स्वयं निर्मित आयुर्वेदिक औषधि के माध्यम से स्वस्थ राष्ट्र निर्माण में अनवरत संलग्न हैऔर आयुर्वेद उत्थान के माध्यम से दैनिक स्वास्थ्य जांच शिविरों के द्वारा अनगिनत लोगों को रोग मुक्त कर स्वस्थ जीवन की ओर उन्मुख कर समृद्ध जीवन की ओर अग्रसर है *सेवा सदन द्वारा निर्मित
गिलोय अमृत
अमृत त्रिफला चूर्ण
मधुमेह नाशक चूर्ण
अमृत गैसहर चूर्ण
अमृत पथरी नाशक चूर्ण इत्यादि
औषधि दैनिक जीवन में होने वाली बीमारी जैसे कोरोना, वायरल फीवर, स्वाइन फ्लू, मलेरिया, कफ,खांसी भूख, आंत्र संबंधी समस्याओं में आश्चर्यजनक रूप से कार्य कर बीमारी को जड़ से समाप्त कर स्वस्थ जीवन प्रदान करने में सहायक सिद्ध होती हैं।अतः आयुर्वेद के अंतर्गत हम ईश्वरीय प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर अपनी जीवनशैली को प्राकृतिक संसाधनों से ओतप्रोत कर एक स्वस्थ और संपन्न जीवन पा सकते हैं। इस अवसर पर सेवा सदन के महामंत्री चौधरी मंगल सिंह जी ने शिविर में उपस्थित सभी व्यक्तियों मनोज कुमार, चेतन, रेखा सिंगल, अरविंद कुमार,रुचिरा,ए. के.जैन, रीटा अग्रवाल को निशुल्क अमृत त्रिफला चूर्ण वितरित किए। इस मौके पर सेवा सदन के सभी कार्यकर्ता गीता चौधरी, मोनिका खंतवाल, प्रिया रानी, नजमा सैफी, रेनू तोमर उपस्थित थे।
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