भूल कर देना मुझे झाँसा नहीं
शब्दवाणी समाचार, शुक्रवार 17 जुलाई 2020, (रचनाकार : बलजीत सिंह बेनाम) नई दिल्ली।
ग़ज़ल
भूल कर देना मुझे झाँसा नहीं
गोलियां कच्ची मैं भी खेला नहीं
झूठ से परहेज़ जितना भी करो
काम इसके बिन मगर चलता नहीं
दिल से उतरा है अभी तक जो मिला
दिल में कोई आज तक उतरा नहीं
तेरे ख़्वाबों में गुज़ारूँ ज़िंदगी
इस क़दर भी मैं तो दीवाना नहीं
हक़ नहीं मिलता किसी को भीख़ में
ये हक़ीक़त ही है अफ़साना नहीं
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