रमजान में ज़कात और उसका हिसाब कैसे करें

शब्दवाणी समाचार, रविवार 03 मई  2020, (आर आर खान) नई दिल्ली। रमजान में ईद की नमाज से पहले जकात निकालना बेहद जरूरी है। ज़कात और उसका हिसाब कैसे करें इस बारे में सैय्यद अहमद ग़ाज़ी फलाही ने बताया हम इस प्रकार से जकात का हिसाब लगा सकते हैं।



1 सोना और चांदी का निसाब
अगर किसी के पास साढ़े सात (7।5) तोला सोना हो और उस पर एक हिजरी साल गुजर जायें तो उस पर ज़कात फ़र्ज़ है, ढाई (2।5) फीसद यानी चालीसवाँ ज़कात निकालेगा और अगर उसके साढ़े बावन (52।5)तोला चांदी है और उस पर एक साल गुजर जायें तो उस पर ज़कात फ़र्ज़ है, औरत के सोने और चांदी के जेवर पर भी ज़कात फ़र्ज़ है अगर निसाब के करीब हो या जाएद और एक साल गुजर जायें,
अगर किसी पास चांदी और सोना दोनों हैं लेकिन दोनों निसाब से कम हैं तो इमाम शाफ़ई और इमाम अहमद के नजदीक उन पर ज़कात नहीं है क्योंकि उन दोनों को मिलाना सही नहीं है, यह दोनों अलग अलग धात हैं, अलबत्ता इमाम मालिक और इमाम अबु हनीफा के नजदीक दोनों को मिलाया जायेगा अगर मिलाने पर दोनों में से एक का निसाब पूरा जो जाता हो तो उन पर ज़कात फ़र्ज़ है,
2 तिजारत का माल
इस पर भी ज़कात फ़र्ज़ है जबकि माल ए तिजारत की कीमत साढ़े सात (7।5) तोला सोना या साढ़े बावन (52।5) तोला चांदी के कीमत के बराबर हो और उस पर भी साल गुजर जायें तो ढाई (2।5) फीसद ज़कात निकालना जरूरी है, उस रक़म पर भी ज़कात फ़र्ज़ है जो आमद-ओ-सर्फ़ (income and expenditure) के बाद बच जायें,
जाती इस्तेमाल की चीज़ों पर ज़कात नहीं है, जैसे घर, कपड़े, बर्तन , किताबें और गाड़ियां वग़ैरा
3 जरई पैदावार
नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि "जो जमीन आसमान या क़ुदरती चश्मो/नहरों से लबरेज़ हो उस पर दसवा हिस्सा ज़कात है, और जो जमीन मसनोई ज़रियों Banawati Cheez (ट्यूब वग़ैरा) से लबरेज़ की जाती हो उस पर बीसवां हिस्सा ज़कात है, एहनाफ़ के नजदीक सब्ज़ियों पर ज़कात फ़र्ज़ है, ulama salaf की अक्सरियत के नजदीक सब्ज़ियों पर कोई ज़कात नहीं है,
4 मवेशियों पर ज़कात mandarja zail तरीके से निकालेंगे
30 गायें पर एक बकरी,
40 गायें पर दो साल से बड़ा बछड़ा,
भैसों की ज़कात की भी गायों की तरह है,
बकरियों पर 40 से 120 पर एक बकरी,
5 Baramdah Shuda Dafeena (खज़ाना) MAADINIYAT पर भी ज़कात फ़र्ज़ है चूंकि यह अमवाल आम तौर पर हम से मौतल्लिक़ नहीं हैं इसलिये इनका निसाब व टिप्पणी बयान करना जरूरी है समझता हूँ,
ज़कात के मुस्तहिक़ 8 हैं,
सूरह तौबा आयत 60 में ज़कात के 8 मुस्तहिकीन बयान किये गये हैं,
1 फुकरा (Needy people)
यह वह लोग हैं जिनके पास कुछ न कुछ माल है मगर उनकी जरूरियात के लिये काफी न हो, तंग दस्ती में ज़िन्दगी गुज़ारते हैं मगर किसी से सवाल नहीं करते,
2 मिसकीन (poor people)
खस्ता व तबाह हाल लोग है जिनके पास बुनियादी जरूरत की तकमील के लिये भी कुछ न हो, मसाकीन में वह लोग भी शामिल हैं जो कमाने की ताकत रखते हों मगर उन्हें रोज़गार नहीं मिलता है, ज़कात की रकम से इन्हें रोजगार कराया जाएं,
3 ज़कात जमा करने वाले
यानी ज़कात वसूल करने वाले को ज़कात की रकम से तनख्वाह दी जायेगी,
4 मुअल्लफ़तुल् कुलूब
वह लोग हैं जिनके दिलों को इस्लाम पर जमाना मक़सूद हो जैसे नौ मुस्लिम जो इस्लाम मे दाख़िल हुवे हैं चाहे वह मालदार ही क्यों न हो गर्दन छुड़ाने के लिए
5 गुलामी का रिवाज खत्म हो गया है, अब यह madan (condemned) लोगों पर ख़र्च किया जायेगा जो जुर्माना अदा न कर सकने की वजह से क़ैद की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं,
6 कर्जदार को
इससे मुराद कर्ज़दार लोग हैं ऐसे कर्ज़दार कि इतना कर्ज़ उन पर हो कि अदा करने के बाद उनके पास मिक़दार निसाब से कम बचता हो तो ऐसे लोगों को ज़कात दी जा सकती है लकिन फज़ूल ख़र्च और बदकार को नहीं दिया जायेगा,
7 फी-सबिलिल्लाह/ अल्लाह के रास्ते मे
ग़लबा ए दीन के लिये जिद्दोजहद करने वाले लोगों को ज़कात की रक़म दी जायेगी, नबी करीम सल्ल। ने फरमाया कि ज़कात लेना किसी मालदार के लिये जायज़ नहीं लेकिन अगर मालदार आदमी जिहाद के लिये मदद का हाज़त हो तो उसे ज़कात देनी चाहिए,
8 मुसाफिर को 
यानी मुसाफ़िर चाहे वह अपने वतन में कितना ही मालदार हो, पर कोई शख्स अपने वालिदैन, औलाद, बीवी और करीबी रिश्तेदारों को ज़कात नहीं देगा जिनका नफका उस पर वाज़िब है।  



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