गालियां खाकर चले पैदल, मुम्बई से मजदूर पहुंचे मौदहा
शब्दवाणी समाचार, बुधवार 29 अप्रैल (मुकेश कुमार), हमीरपुर। इस समय देश सहित आधी दुनिया कोविड 19 कोरोना के कहर से परेशान हैं।अधिकांश देशों में लाकडाउन की घोषणा कर दी है।भारत जैसे विकासशील और बडी आबादी वाले देश में भी लाकडाउन का दूसरा चरण चल रहा है।लेकिन भारत की आर्थिक स्थिति को देखते हुए लाकडाउन से सबसे ज्यादा प्रभावित देश के औद्योगिक शहरों में रोजगार की तलाश में गए दिहाड़ी मजदूर इस लाकडाउन से प्रभावित हो रहे हैं।और संसाधनों के आभाव मे मजदूर पैदल ही चल कर अपने घर पहुंचना चाहते हैं।बताते चलें कि कल शाम ऐसे ही लगभग डेढ़ दर्जन मजदूर कस्बे के बडे चौराहे पर पहुंचे और पत्रकारों को अपनी दास्तान सुनाई।उत्तर प्रदेश के नेपाल से जुड़े जिला बहराइच से रोजगार की तलाश में इस उम्मीद से गये युवा कि आगामी ईद के त्योहार मे परिवार के सभी लोगों के लिए नये कपडों के साथ आकर घर में ईद मनायेंगे।लेकिन उन्होंने शायद सपने में भी नहीं सोचा था कि घर से पैसा कमाने की लालसा उन्हें हजारों किलोमीटर पैदल चलने पर मजबूर कर देगी।कल देश की औद्योगिक राजधानी माया नगरी मुम्बई से भूखे प्यासे पैदल चलकर मौदहा पहुंचे।
सूफियान पुत्र ननकऊ निवासी बहराइच,मोहम्मद इस्राईल पुत्र मो.हमीद अली बहराइच ,रमेश कुमार पुत्र संतोष कुमार निवासी बस्ती, लवकुश पुत्र रामबरन निवासी बस्ती ,अतीक पुत्र अमीन निवासी बहराइच, मोहम्मद मकसूद अली पुत्र नाजिम अली निवासी बहराइच, अखिलेश कुमार पुत्र हरिराम निवासी बहराइच, मुबीन पुत्र फारूख अली निवासी बहराइच, शफीक अली पुत्र इरशाद अली निवासी बहराइच, सय्यद अली पुत्र मोहर्रम अली निवासी बहराइच, सोनू कुमार पुत्र बंशीधर निवासी बहराइच
सभी लोग नासिक में होटल में काम करते थे।पैदल आये हैं।
बिहारी प्रजापति पुत्र रामबहाल निवासी बस्ती मुम्बई ,बबलू पुत्र दुखकरन निवासी बलरामपुर हैदराबाद में फर्नीचर का काम, पन्ना लाल पुत्र दयाराम निवासी बलरामपुर नासिक में फर्नीचर का काम करते थे।इनमें से अधिकांश युवक होटलों में और फर्नीचर की दूकानों मे काम करते थे।लेकिन उनके रोजगार को कोरोना की नजर लग गई और रोजगार बंद हो गए।जो भी पैसा कमाया था।जब वह भी खर्च होने लगा तो दूकानों के मालिकों से उधार लेकर पैदल ही अपने घर चल पड़े।और लगभग बीस दिनों से अधिक समय तक यात्रा करने के बाद आज मौदहा पहुंचे।उक्त युवाओं ने बताया कि अधिकांश समय वह लोग भूखे प्यासे ही चले हैं।लेकिन उन्हें मिलने वाली पुलिस की गालियों और लाठियों से ही अपना पेट भरते रहे हैं।
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