हरित अर्थव्यतवस्थान और समग्र विकास के लिए अंतरर्देशीय जलमार्गों का उपयोग
शब्दवाणी समाचार शनिवार 09 नवंबर 2019 (अर्चना दत्ता मुखोपाध्याय) नई दिल्ली। आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और इसके बदले में गरीबी समाप्त करने तथा सतत टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत और प्रभावी परिवहन बुनियादी ढांचा महत्वपूर्ण कुंजी है। अंतर्देशीय जल परिवहन प्रणाली, पहुंच गतिशीलता और संपर्क उपलब्ध कराकर और जमीनी स्तर पर रोजगार का सृजन सुनिश्चित करती है तथा इससे पर्यावरण पर कम प्रभाव पड़ता है और लागत भी कम आती है।
हमारी सभ्यता में, नदियों ने लोगों और वस्तुओं के आवागमन में परिवहन की प्रणाली के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज के युग में भी अनेक देश बड़ी और भारी माल आवाजाही के लिए विशेष तौर पर अंतरर्देशीय जल परिवहन पर ही अधिकांश रूप से निर्भर करते हैं।
भारत नदियों का देश है। इसका 7500 किलोमीटर लंबा समुद्र तट है और लगभग 14,500 किलोमीटर नेवीगेशन योग्य जलमार्ग है। यह परिवहन की सस्ती और हरित मोड की परिवहन प्रणाली के विकास के लिए व्यापक क्षमता प्रदान करता है। लेकिन वर्तमान में इन जलमार्गों और समुद्र तटों के द्वारा बहुत कम प्रतिशत व्यापार किया जा रहा है। तटीय शिपिंग का अंतर्देशीय जल परिवहन में केवल 6% और व्यापार में लगभग 0.4% योगदान है।
लगभग 60% माल की ढलाई आज भी भीड़भाड़ वाली सडकों और 25% रेलवे नेटवर्क से की जा रही है। इससे माल के आवागमन में धीमापन आने के साथ-साथ अनिश्चित्ता, व्यापार की लागत में वृद्धि, पर्यावरणीय रूप से गहरे प्रभाव को बढ़ावा मिलता है। यह देखा गया है कि भारत में लॉजिस्टिक लागत देश के जीडीपी की 18 प्रतिशत है, जो चीन, अमेरिका, ब्रिटेन और कई अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक है। इससे भारतीय माल महंगा तथा कम प्रतिस्पद्धी हो जाता है। विश्व बैंक के विश्लेषण के अनुसार, 1 टन माल की सड़क द्वारा एक किलोमीटर ढुलाई की लागत 2.28 रुपये, रेल द्वारा 1.41 रुपये और जलमार्ग द्वारा 1.19 रुपये है। इसलिए देश में माल ढुलाई की लागत को जलमार्ग परिवहन द्वारा अधिक से अधिक माल की ढुलाई करके कम किया जा सकता है।
ऊर्जा संकट के इस युग में, जलमार्गों को ईंधन कुशल, पर्यावरण के अनुकूल और लागत प्रभावी परिवहन साधन के अलावा रेल और सड़क क्षेत्र पर दबाव करने की क्षमता वाला पाया गया है। भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण की स्थापना अक्टूबर 1986 में हुई थी। यह हमारे अंतर्देशीय जलमार्गों की विशाल अप्रयुक्त क्षमता के अधिकतम उपयोग के लिए एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम 2016 हमारे अंतरर्देशीय जलमार्गों की अप्रयुक्त क्षमता को विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इस अधिनियम के तहत 24 राज्यों में 111 अंतर्देशीय जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया। भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण इन जलमार्गों के विकास के लिए परियोजनाओं को चलायेगा ताकि इन्हें पर्यावरण अनुकूल और परिवहन के टिकाऊ मॉडल के रूप में विकसित किया जा सके।
इन परियोजना में पहली ऐसी परियोजना गंगा नदी पर विश्व बैंक की सहायता से जल विकास मार्ग परियोजना या राष्ट्रीय जलमार्ग-1 है। इस परियोजना का उद्देश्य इलाहाबाद और हल्दिया में नदी के खंड को विकसित करना है ताकि इसे 1500 से 2000 टन भार की क्षमता वाले जहाजों के लिए नेवीगेशन योग्य बनाया जा सके। यह क्षमता मालगाडि़यों की माल ढोने की क्षमता के बराबर है। इसके लिए परियोजना में 2.2 से 3.0 मीटर गहराई और 35 से 45 मीटर चौडा़ई के नेविगेशन चैनल का विकास किया जाएगा। फरक्का नेविगेशन लॉक के अलावा वाराणसी, हल्दिया, साहेबगंज में बहुमॉडल टर्मिनलों का निर्माण किया जा रहा है। नदी जानकारी की आधुनिक प्रणालियों, प्रशिक्षण और संरक्षण कार्य, रात्रि नेविगेशन सुविधाएं और अन्य आधुनिक सुविधाओं जैसे चैनल मार्किंग, नेविगेशन लॉक आदि का जहाजों की कुशल और सुरक्षित आवाजाही जैसी सुविधाओं का विकास किया जा रहा है। परियोजना के पहले चरण में नदी का हल्दिया – वाराणसी खंड शामिल है। एक बार परिचालन होने पर यह जलमार्ग बड़े विविध मॉडल परिवहन नेटवर्क का हिस्सा हो जायेगा जिसका पूर्वी समर्पित रेल फ्रेट कॉरिडोर तथा क्षेत्र के राजमार्गों के मौजूदा नेटवर्क से संपर्क हो जाएगा। बिहार और उत्तर प्रदेश में माल भीड़-भाड़ वाले और लम्बे थल मार्गों से महाराष्ट्र में मुंबई और गुजरात में कांडला बंदरगाहों तक ले जाया जाता है। राष्ट्रीय जलमार्ग-1 के विकास से इन राज्यों को अपना कुछ माल कलकत्ता, हल्दिया परिसर में भेजने में मदद मिलेगी जिससे माल की आवाजाही अधिक विश्वसनीय और सस्ती हो जाएगी। राष्ट्रीय जलमार्ग-1 के 6 शहरों जैसे इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, मुगेर, कोलकाता और हल्दिया में 18 फेरी टर्मिनलों के निर्माण के लिए श्रेष्ठ स्थलों की पहचान करने के लिए थॉमसन डिजाइन ग्रुप, बोस्टन, अमेरिका और इन्फ्रास्ट्रक्चर आर्केटेक्चर लेब ऑफ मेसासुएटस इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नॉलोजी के साथ एक संयुक्त उपक्रम बनाया गया है। इन टर्मिनलों को मौजूदा परिवहन नेटवर्क और प्रत्येक शहर की सुविधाओं के साथ एकीकृत करने के उद्देश्य से व्यवहारता अध्ययन में माल और यात्री आवाजाही की क्षमता को ध्यान में रखा जाएगा।
एनडब्ल्यू-1 पूरे उत्तर पूर्वी भारत के लिए अग्रणीय लॉजेस्टिक रक्त वाहिनी के रूप में उभर रही है। जो भारत के सबसे अधिक घनत्व वाले आबादी क्षेत्रों और संसाधन समृद्ध क्षेत्र, और अनुमानत: भारत के वस्तु व्यापार का 40 प्रतिशत पैदा करता है। क्षेत्र के परिपूर्ण बाजार देश के अन्य् हिस्सों की वस्तुओं को भी आकर्षित करते हैं। जल-सड़क-रेल नेटवर्क क्षेत्र के उद्योगों और विनिर्माण इकाईयों को भारत और विदेशों के बाजारों तक वस्तुओं के निर्बाध प्रवाह को सुनिश्चित करता है। इसके अलावा गंगा के मैदानी कृषि समृद्ध किसानों की बाजार में वृहद पहुंच प्रदान करता है।
क्योंकि गंगा नदी हमारे देश के सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय परिवेश में विशेषता रखती है। भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) नदी के विविधतापूर्ण जीव-जंतुओं और जलीय जैव विविधता के संरक्षण के लिए “प्रकृति से समन्वय” के सिद्धांत का अनुसरण करता है। इसके लिए 2000 टन तक के कार्गो ले जाने वाले बड़ी नावों की न्यूनतम निकर्षण यात्रा शुरू की गयी है। विद्यमान द्वीपों और विशाल उथले क्षेत्रों में पानी को गति देने के लिए केवल बांस जैसे प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) यह भी सुनिश्चित करता है कि जल परिवहन मार्ग में पड़ने वाले दो जलीय वन्य जीवन अभयारण्यों- वाराणसी स्थित काशी कछुआ अभयारण्य, भागलपुर स्थित विक्रमशिला डालफिन अभयारण्य पर प्रतिकूल प्रभाव न डालें।
भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) अगले तीन वर्षों में 37 एनडब्ल्यूएस विकसीत करने की प्रक्रिया में है। दुबरी और हस्तिनांगमारी के बीच रो-रो परिवहन शुरू हो गया और ब्रह्मपुत्र नदी पर जलावतरण सुविधा के लिए पंडु या एनडब्ल्यू-2 का निर्माण किया गया है। एनडब्ल्यू-3 पर सामान्य विकास कार्य जारी हैं। एनडब्ल्यू-4 का विकास (काकीनंदा-पुदुचेरी नहर के साथ कृष्णा और गोदावरी नदियों), एनडब्ल्यू-5 (ब्राह्मणी और महानदी डेल्टा के साथ पूर्वी तट नहर), एनडब्ल्यू-16 (बरक), एनडब्ल्यू-37 (गंडक), एनडब्ल्यू-40 (घाघरा) और एनडब्ल्यू-58 (कोशी) का काम भी प्रगति पर है। जलमार्गों का विकास करते समय प्रशासकीय वैधानिक तंत्र अंतर्देशीय जलमार्गों पोतों की भी मरम्मत का काम हो रहा है। आधुनिक अंतर्देशीय जल परिवहन और आवश्यक विधायी तंत्र की आवश्यकता को महसूस करते हुए एक सदी से पुराने अंतर्देशीय पोत अधिनियम 1997 में संशोधन के लिए एक नया विधेयक पर काम चल रहा है। 2017 विधेयक विभिन्न राज्यों में अंतर्देशीय पोतों के मानकों की विभिन्नताओं के संबंध में वर्तमान अंतराल को संबोधित करता है। विधेयक के मसौदे के अनुसार अंतर्देशीय पोतों के सुरक्षित आवागमन हेतु समान मानक अपनाये जाएंगे।
(अर्चना दत्ता पूर्व प्रशासकीय अधिकारी हैं। ऑल इण्डिया रेडियो और दूरदर्शन में निदेशक (समाचार) रह चुकी हैं।)
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