हीमोफीलिया फेडरेशन (इंडिया) ने मरीजों की देखभाल के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से मिलाया हाथ

शब्दवाणी समाचार मंगलवार 25 जून 2019 नई दिल्ली। हीमोफीलिया फेडरेशन (इंडिया) (एचएफआई) हीमोफीलिया के मरीजों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली सर्वोच्च संस्था है। एचएफआई ने केंद्र सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ मिलकर हीमोफीलिया के मरीजों की राष्ट्रीय स्तर पर देखभाल के अभियान की शुरुआत की है। हीमोफीलिया के मरीजों के सामूहिक, व्यापक, बेहतर इलाज और अच्छी देखभाल के लिए एचएफआई ने आठ सूत्रीय अपील मंत्रालय को सौंपी है। इसी के साथ इस अवसर पर वर्ल्ड हीमोफीलिया डे को भी याद किया गया, जो हर साल 17 अप्रैल को दुनिया भर के 140 देशों में इस रोग के प्रति जनजागरूकता फैलाने और रोगियों को बेहतर इलाज मुहैया कराने की दिशा में प्रोत्साहन देने के लिए मनाया जाता है।



एचएफआई भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से “हीमोफीलिया केयरवी पर पहल-आईसीएच-वी पर संवेदनशीलता कार्यक्रम और उससे आगे की राह” विषय पर नियमित रूप से कार्यक्रम आयोजित कर रही है। 2015 में शुरू हुई इस श्रृंखला का यह पांचवां कार्यक्रम होगा।
इस कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर हीमोफीलिया के मरीजों के लिए नीतियां बनाने वाले नीति निर्माताओं में संवेदनशीलता जगाना है। भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने हीमोफीलिया और हीमोग्लोबिनोपैथी के मरीजों की देखभाल में शामिल राज्य सरकार के सभी स्वास्थ्य सचिवों, मिशन निदेशकों और नोडल अफसरों को इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया था। इसके अलावा नामी-गिरामी डॉक्टरों, हीमोटोलॉजिस्ट्स, फिजियोथेरिपस्ट्स और हीमोफीलिया के मरीजों के इलाज और देखभाल में जुटे देश के कई मेडिकल कॉल्जों और अस्पतालों के प्रतिनिधियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया था।
एचएफआई के सीईओ आरटीएन विंग कमांडर (रिटायर्ड) एसएस रॉय चौधरी ने हीमोफीलिया के मरीजों की देखभाल पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, “एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रत्येक 10 हजार लोगों में से एक व्यक्ति हीमोफीलिया से पीड़ित है। इस रेकॉर्ड को देखते हुए भारत में 1 लाख 33 हजार से ज्यादा हीमोफीलिया के मरीज हैं। बदकिस्मती से हम बेहतर आधारभूत ढांचे के अभाव में अब तक केवल हीमोफीलिया के 22 हजार मरीजों की पहचान कर पाए हैं। जिन मरीजों की पहचान हो भी गई है, उनको भी हीमोफीलिया के वर्ल्ड फेडरेशन के मानकों के अनुसार पर्याप्त रूप से बेहतर इलाज और दवाइयां नहीं मिल रही है। हमें आशा है कि सरकार, मंत्रालय और सभी संबंधित विभाग इस हालात पर जल्द से जल्द काबू पाने के लिए कदम उठाएंगे। इन सभी मामले में एचएफआई सभी संभव तरीकों से सरकार के साथ सहयोग करने के लिए तैयार है।
1983 में संस्थान की स्थापना के बाद पिछले 36 साल से फेडरेशन हीमोफीलिया समुदाय की आवाज लगातार उठा रहा है। इस कार्यक्रम के माध्यम से फेडरेशन का लक्ष्य स्वास्थ्य मंत्रालय के सहयोग से हीमोफीलिया के मरीजों के बेहतर इलाज की समस्या का उच्चस्तरीय समाधान खोजने की प्रतिबद्धता को प्रेरित करना है। इसी के साथ स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर हीमोफीलिया के मरीजों के पूरी तरह इलाज को बढ़ावा देना भी फेडरेशन का लक्ष्य है।
हीमोफीललिया के मरीजों को इलाज की मौजूदा व्यवस्था से काफी परेशानियां झेलनी पड़ रही है। हीमोफीलिया मरीज के साथ आजीवन रहने वाली बीमारी है। यह ऐसी गड़बड़ी है, जिसका इलाज नहीं किया जा सकता। इसे एंटी हीमोफीलिया फैक्टर्स या एएचएफ से संबंधित दवाइयां लेकर ही कंट्रोल किया जा सकता है। यह दवाइयां अमेरिका, जर्मनी, इटली और कनाडा जैसे विकसित देशों से आयात की जाती हैं, लिहाजा यह महंगी हैं।
इसके अलावा चूंकि यह दवाएं आमतौर पर सभी अस्पतालों में मौजूद नहीं रहती। इसलिए शरीर के कई तरह के जोड़ों की दिव्यांगता से ग्रस्त मरीजों को दर्द सहते हुए अपनी जिंदगी गुजारनी पड़ती है। इस तरह की बदतर स्थिति तब और भी गंभीर हो जाती है, जब हीमोफीलिया के अधिकतर मरीज दवाइयों और बेहतर इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं।
अब तक हीमोफीलिया फेडरेशन (इंडिया) ने हीमोफीलिया से ग्रस्त 22 हजार से अधिक बच्चों (सी/पीडब्ल्यूएचएस) की पहचान की है। हालांकि वास्तव में देश की आबादी को देखते हुए यह आंकड़ा 1.3 लाख के करीब होना चाहिए। हीमोफीलिया के बाकी मरीजों की पहचान और जांच तभी संभव हो सकती है, जब हमारे यहां हीमोफीलिया के इलाज के लिए पर्याप्त प्रशिक्षित डॉक्टर हो और इस रोग की जांच के लिए पर्याप्त सुविधाएं हों।
गौरतलब है कि स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ हीमोफीलिया फेडरेशन (इंडिया) के करीबी सहयोग से पिछले चार कार्यक्रम, आईसेच 1, आईसीएच 2, आईसीएच3 और आईसीएच-4 काफी सफल रहे हैं। इससे हीमोफीलिया रोग के प्रति जनजागरूकता बढ़ी है। 3 साल पहले हीमोफीलिया के मरीजों को दिव्यांगता अधिनियम 2016 और भारतीय स्वास्थ्य मिशन के फ्लेक्सी पूल फंड में शामिल कर लिया गया। मंत्रालय ने रक्त के विभिन्न घटकों को अलग-अलग करने के लिए 198 ब्लड सेपरेशन यूनिट बनाई हैं, जिसमें प्लास्मा के घटक से एचएफ-8 हासिल किया जाता है।
वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफीलिया के अध्ययन (सालाना ग्लोबल सर्वे) के अनुसार विश्व में हीमोफिलिया से ग्रस्त मरीजों की 50 फीसदी आबादी भारत में रहती है। 70 फीसदी से अधिक हीमोफीलिया के मरीजों को अपने रोग के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं होती या इलाज तक उनकी पहुंच नहीं होती। रोग के बुनियादी ज्ञान के अभाव और पर्याप्त इलाज न मिलने से मरीज की मौत का खतरा बहुत ज्यादा होता है।
हीमोफीलिया खून के थक्के जमने की क्षमता को प्रभावित करने वाली आनुवांशिक रोग है। इस रोग में जरा सी चोट लगने या शरीर पर हलका सा कट लगने से मरीजों के शरीर में क्लोटिंग प्रोटीन की कमी से, जिसे फैक्टर्स कहा जाता है, खून का थक्का नहीं जमता। अगर इसकी पर्याप्त देखभाल नहीं की जाती तो जोड़ों और मांसपेशियों में बार-बार और लंबे समय तक खून बहने से स्थायी दिव्यांगता भी आ सकती है। संवेदनशील अंगों से लगातार खून बहने से मौत भी हो सकती है। हीमोफीलिया का एकमात्र संभव इलाज केनल मरीजों को एंटी हीमोफिलिक फैक्टर्स एएचएफ से संबंधित दवाइयां देना है, जो बेहद कीमती होती है, न तो यह दवाएं भारत में बनाई जाती है और न ही देश में आसानी से मिलती हैं (फैक्टर की एक यूनिट की लागत 10-12 रुपये हैं। लगातार खून बहने से पीड़ित हीमोफीलिया के मरीज को एक ही शॉट में 500 से 2,000 यूनिट ब्लड की जरूरत होती है, जिसका खर्च औसत रूप से 5 हजार से 20 हजार रुपये तक बैठता है।



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